चाहत
वतन की ख़ाक में मिल कर
चमन की राख बन जाऊं
कभी जागूं यही जागों
यहीं फिर थक के सो जाऊं
उम्र सारी गुजारी इन्हीं किनारों पर
किए सज़दे इसीके दर-दीवारों पर
है नाज़ अपने हिंद के मुझको नजारो पर
कहीं कैसे चला जाऊं भला तेरे इशारों पर
एक सीने में धड़कता दिल भी है
अमन की चाह में दिन -रात वो जलता भी है
चल वतन के दिल से मेरे दिल तू दिल्लगी करले
आज बन्दों से खुदा के फिर तू बंदगी करले
तमन्ना हसरतों के जाल से बहलाया गया हूँ
नगमा-e-नूर -e-वतन से फिर नहलाया गया हूँ
नही है हाल की , दिल का मेरे , अब हाल आगे क्या होगा
जो ख़ुद बे-हाल हो उसका भला बे -हाल हाल क्या होगा
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