Tuesday, September 29, 2009

Puchhate Ho To Suno Kaise Basar Hoti hai

पूछते हो तो सुनो कैसे बसर होती है

पूछते हो तो सुनो कैसे बसर होती है
रात खैरात की सदके की सहर होती है

साँस भरने को तो जीना नहीं कहते या रब
दिल ही दुखता है न अब आस्तीन तर होती है

जैसे जगी हुई आँखों मैं चुभें कांच के ख्वाब
रात इस तरह दीवानों की बसर होती है

गम ही दुश्मन है मेरा गम ही को दिल ढूँढता है
एक लम्हे की जुदाई भी अगर होती है

एक मरकज़ की तलाश एक भटकती खुशबु
कभी मंजिल कभी तम्हीद-ऐ-सफर होती है

मीना कुमारी नाज़

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