यूँ तेरी रहगुज़र से दीवानावार गुज़रे
यूँ तेरी रहगुज़र से दीवानावार गुज़रे
कांधे पे अपने रख के अपना मजार गुज़रे
बैठे रहे हैं रस्ते में दिल का खंडहर सजा कर
शायद इसी तरफ़ से एक दिन बहार गुज़रे
बहती हुई ये नदिया घुलते हुए किनारे
कोई तो पार उतरे कोई तो पार गुज़रे
तू ने भी हम को देखा हमने भी तुझको देखा
तू दिल ही हार गुज़ारा हम जान हार गुज़रे
मीना कुमारी नाज़
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